Sunday 13 December 2015

दीवारों के कान महान!

कहते हैं कि दीवारों के भी कान होते हैं।

किसने यह मुहावरा बनाया होगा !?

यही लोग तो संवेदनहीन आदमी की तुलना दीवारों और पत्थरों से करते हैं। दीवार और पत्थर ठोस हैं, ठस हैं, उनमें कहीं नरमी नहीं है। संभवतः इसीलिए अमानवीयता के बारे में बताने के लिए उनका उदाहरण दिया जाता है। 

उनके कान कैसे हो सकते हैं!?

फिर ये कान किसके हैं!?

लगता है यह कहावत उन लोगों ने गढ़ी है जो इमेज में जीते हैं, जो नाम के लिए जीते हैं, मशहूरी के लिए जीते हैं, ‘बड़े’ कहलाने के लिए जीते हैं। वे लोग जानते हैं कि हमेशा एक जैसा रहना मुमक़िन नहीं है; अच्छा और महान दिखना आसान है, होना आसान नहीं है। सच तो यह है कि महानता की कोई स्पष्ट परिभाषा ही नहीं है, पता नहीं कौन-से इंचटेप से लोग इसे नाप लेते हैं ! लेकिन तथाकथित महान लोग शायद जानते हैं कि महानता जो कुछ भी होती हो, चौबीस घंटे संभव ही नहीं है इसलिए महान आदमी की इमेज बनाओ, जब भी हम नॉन-महान यानि गंदी हरक़तें करेंगे, यह इमेज हमारी रक्षा करेगी।

यथार्थवादी व्यक्ति किसी काल्पनिक महानता की चिंता में कैसे जी सकता है !?

इमेज में जीनेवाले को स्वभावतः इमेज टूटने का ख़तरा हर पल सताएगा, क्योंकि उसका सब कुछ इमेज में बंधा है। इमेज गई तो सब गया। नाम बिगड़ जाएगा तो ज़िंदगी बिगड़ जाएगी। ज़ाहिर है कि उसे ऐसे एक-एक आदमी से डर लगेगा जो उसकी इमेज के लिए ख़तरा हो सकता है। ऐसा आदमी हर पल असुरक्षा की भावना में जिएगा। कहीं दूरदराज़ किसी कोने में कोई आदमी कोई ऐसी बात कह रहा है जो उसकी इमेज के लिए, नाम के लिए नुकसानदायक है, असुरक्षा की भावना से ग्रस्त आदमी के कान खड़े हो जाएंगे, उसे डर लगने लगेगा। यह डरा हुआ आदमी हर जगह अपने कान लगाए बैठा रहेगा, यह दीवारों, खिड़कियों और रोशनदानों में लटका रहेगा क्योंकि इसे अपनी नक़ली महानता की रक्षा करनी है। यह तरह-तरह से लोगों को डराएगा, उन्हें डराने के लिए मुहावरे गढ़ेगा, कुछ भी करेगा क्योंकि इसकी सारी महानता लोगों के डर से पैदा हो रही है, इसकी या इसके जैसे लोगों की बनाई मान्यताओं से पैदा हो रही है।

वरना ‘दीवारों के कान’ की अन्य वजह या अन्य अर्थ क्या हो सकते हैं ?

(जारी)

2-महत्वाकांक्षा और आतंक

-संजय ग्रोवर
13-12-2015

  

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